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लेखनी कहानी -02-May-2022 कितने बदल गए हैं आप

"#शाॅर्ट  स्टोरी चैलेंज प्रतियोगिता हेतु" 

जॉनर : प्रेम 
कितने बदल गए हैं आप 

"अरे, आप अभी तक नहाए नहीं" ?
घर में पैर रखते ही श्रीमती जी ने प्रश्न दाग दिया ।
"देवी जी, आप शायद भूल रही हैं कि आज रविवार है । रविवार मतलब आजादी का दिन" हमने चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा । 
"अरे हां, मैं तो भूल ही गई थी कि आज रविवार है । अब देखो न , ये स्कूल वाले रविवार को भी परीक्षाऐं रख लेते हैं । हम औरतों को एक ही तो दिन मिलता है थोड़ा आराम करने के लिये मगर ये अधिकारी लोग खुद तो ए सी में बैठकर आराम फरमाते हैं और हमें इस चिलचिलाती धूप में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं" । भुनभुनाते हुए वे बोलीं ।

विषय बदल गया था । अब बात एक अधिकारी और एक शिक्षक के बीच होने लग गई । वे शिक्षक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही थीं तो मुझे अधिकारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करना ही था । वैसे भी एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में मैं कभी स्कूल शिक्षा विभाग में नहीं रहा । हां, शुरूआती दौर में विकास अधिकारी अवश्य रहा जहां प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का प्रशासनिक कार्य देखना पड़ता था । तब स्कूल शिक्षा का बुरा हाल देखकर मैंने स्वयं के स्तर पर पंचायत समिति में पांचवीं बोर्ड की परीक्षाऐं करवाई थी । फिर उसी पैटर्न को हर जगह अपना लिया गया था । 

कल रविवार को कक्षा 5 की परीक्षा थी और श्रीमती जी को उसमें ड्यूटी देनी थी । हमें "आजादी पर्व" मनाने का अवसर मिल गया था तो हम "प्रतिलिपि" के लिये "10वीं बोर्ड " शीर्षक वाली हास्य व्यंग्य की रचना लिखने बैठ गए थे । बाकी दिनों में तो समय मिल नहीं पाता तो सोचा कि शनिवार और रविवार का भरपूर उपयोग किया जाए । सो दत्त चित्त होकर लिखने बैठ गए।  कब देवी जी आ गई,  पता ही नहीं चला । 

हमने बात आगे बढ़ाते हुए कहा "अधिकारियों को सरकार के आदेश मानने ही पड़ते हैं । हम शिक्षकों की तरह नहीं हैं कि जो मन में आये वही करें" । हमने जानबूझकर उन्हें छेड़ते हुए कहा । उन्हें छेड़ने में जो आनंद आता है वह और कहीं नहीं मिलता है ।

एक तो भयंकर गर्मी और उस पर रविवार को भी ड्यूटी । उस पर शिक्षक वर्ग के ऊपर मेरा तंज ! बिजली गिरना लाजिमी थी । वैसे हम चाहते भी थे कि ये बिजली गिरे । वो जब भी ऐसे "चमकती" हैं , कसम से क्या खूब लगती हैं । उसके बाद गरजने लगती हैं तो बादलों सी गड़गड़ाहट सुनाई देती है । 

"आपको भी अधिकारी किसी शिक्षक ने ही बनाया है । शिक्षक नहीं होते तो आप किसी खेत में घास खोद रहे होते" । वे तमक कर बोलीं ।
"बिल्कुल सही कह रही हैं आप । और तब मेरे साथ भी कोई दूसरी महिला घास खोद रही होती" । 

तीर सही निशाने पर लगा था । वे इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं कि मेरे साथ कोई और रहे । तुनक कर बोलीं 
"ऐसे कैसे कोई आपके पास होती ? मुंह नहीं तोड़ देती मैं उसका" ?

मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था । श्रीमती जी को छेड़कर जो आनंद प्राप्त होता है वह अवर्णनीय है । हम भी कहां पीछे रहने वाले थे, तपाक से कहा 
"क्या आप एक घसियारे से विवाह करतीं" ? 

प्रश्न तीखा था मगर था सटीक । इसका जवाब मैं जानता था । मेरी उम्मीद के मुताबिक उन्होंने उसका जवाब दिया भी नहीं । विषय बदलते हुए वे कहने लगीं 
"सुनो, ATM से पैसे निकलवा लेना । बाजार चलना है" ।
"कोई खास खरीददारी करनी हो तो ज्यादा पैसे निकलवाऊं" ? 
"नहीं, कोई खास नहीं । बस, 5-6 शर्ट ही लेनी हैं" ।
"आपने कब से शर्ट पहननी शुरू कर दी यार" ? हमने अचंभे से पूछा । 
उन्होंने खा जाने वाली नजरों से घूरा और बोलीं 
"आपने कब से शर्ट नहीं खरीदी हैं" ? 
"अरे, अभी बिटिया की शादी पर ही तो नये कपड़े सिलवाये थे । अभी तो दो महीने ही हुए हैं" ।
"हां, पर वो तो सर्दियों के थे । आपके पास हाफ शर्ट नहीं हैं । पिछले दो साल से आप कोरोना का बहाना बनाकर टालते आ रहे हैं । मगर आज तो मैंने पक्का कर ही लिया है कि आज आपको 5-6 हाफ शर्ट तो दिलवाने ही है" । 

उनकी ये बात सही थी कि पिछले दो तीन साल से मैंने कोई हाफ स्लीव्ज वाली शर्ट नहीं खरीदी थी । पर मुझे लगता था कि अभी भी 10-15 शर्ट तो होंगी ही । मैंने कहा "बहुत  सारी शर्ट हैं मेरे पास । मुझे नहीं लेनी कोई शर्ट" ।

उन्होने मुझे फिर से घूरकर देखा । कहने लगीं 
"कितने बदल गए हैं आप ? पहले तो आप हर महीने कुछ न कुछ लेते थे । अब दो साल से भी ऊपर हो गया और अभी भी आनाकानी कर रहे हैं आप ? इतने कंजूस तो नहीं थे आप पहले । सच में, बहुत बदल गए हो आप" ।

आदमी चाहे कुछ भी कहलाना पसंद कर ले मगर कंजूस कहलाना उसे पसंद नहीं है । हमें बड़ा बुरा लगा 
"आपको मैंने कभी मना किया ? कभी रोका ? कभी टोका ? आपने एक के लिए कहा, मैंने दो दिलवाई । फिर  भी कंजूस बता रही हो मुझे" ? 

उन्होंने मेरे कंधे पर सिर टिकाते हुए मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा "अरे बाबा,  आप अपने लिए कंजूस हैं । मुझे तो रानी बनाकर रखते हैं मगर खुद का ध्यान नहीं रखते हैं । तो मुझे रखना पड़ेगा । एक रानी को एक "राजा" के साथ ही रहना चाहिए ना ? आज कुछ नहीं सुनूंगी मैं आपकी । बस, शर्ट लेनी हैं तो लेनी हैं" ।

ऐसा अचूक अस्त्र दे रखा है ब्रह्मा जी ने इन औरतों को कि हम मर्द लोग एक ही झटके में "चित्त" हो जाते हैं । सरेंडर करने के अलावा कोई विकल्प छोड़ती ही नहीं हैं ये । आखिर में बाजार जाना ही पड़ा । तीन शर्ट और दो टी शर्ट  तो ले ली हैं मैडम ने कल । लेकिन अभी शॉपिंग पूरी नहीं हुई है उनकी । बाकी अगले सण्डे को प्लान किया है उन्होंने । हमसे सलाह लेना भी जरूरी नहीं समझा है । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
2.5.22 


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2 Comments

Gunjan Kamal

02-May-2022 10:57 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

03-May-2022 01:00 AM

आभार आपका मैम

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